हम भारत की नदियो को मुख्य रूप से दो भागो में बाट सकते है।
(1). हिमालय की नदियाँ
(2). प्रायद्वीपीय नदियाँ
हिमालयी नदी तन्त्र के उद्भभव को इण्डोब्रह्य परिकल्पना के आधार पर समझ सकते है। इसके अनुसार तिब्बत के पठारी भाग में एक नदी बहती थी जिसकी दिशा पूरब से पश्चिम की ओर थी। जो आज कल सांग्पो,सिन्धु तथा आक्सस नदियो का मिश्रण था। हिमालय नदी का उद्भभव:
हिमालय से निकले वाली नदियों का वर्णन निम्न प्रकार दिया गया है जो इस प्रकार हे
सिन्धु अपवाह
भारत के उत्तर – पश्चिम भाग में सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियाँ जैसे- झेलम, चेनाव , रावी , व्यास तथा सतलज प्रमुख है। तो सबसे पहले हम सिन्धु नदी के बारे में अध्यन करते हे-
सिन्धु नदी:
इस नदी का उद्भाव तिब्बत के मानसरोवर झील के पास चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से हुआ है। यह नदी 2,880 किमी लम्बी है। यह बात जानने की हेकि यह मुख्य रूप से मात्र भारत की नदी नहीं कही जासकती क्यो की इसका कुछ भाग पाकिस्तान मे बहता है इसी कारण से भारत-पाकिस्तान के सिन्धु जल समझोते के अनुसार भारत सिन्धु एवं इसकी सहायक नदियो मे से झेलम तथा चिनाब के 20 प्रतिशत का ही प्रयोग कर सकता है।
सिन्धु के बाई ओर पंजाब की पाँच नदीयाँ सतलज, व्यास, रावी, चिनाव और झेलम मिलकर पंचनद बनाती है। ये सभी नदीयाँ सिन्धु की धारा मिथनकोट के निकट मिलती है।
झेलम नदी
यह नदी कश्मीर घाटी के दक्षिण –पूर्व में 4900 मी की ऊँचाई पर स्थित बेरीनाग के पार झरने से निकलती है। यह वूलर झील से होती हुई पाकिस्तान के पास एक गहरा महाखड्ड बनाती है। तथा ट्रिम्मू के पास चिनाब मे मिल जाती है। यह पाकिस्तान के व भारत के बीच में 170 किमी लम्बी सीमा बनाती है।
चेनाब
चेनाब को अस्किनी तथा चन्द्रभागा के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमाचल प्रदेश के लाहौल जिले के बारालाचा दर्रे के दोनो से निकलती है। यह सिन्धु की भारत में सबसे लम्बी सहायक नदी है।
रावी
रावी नदी हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के पास से निकलती है। यह पाकिस्तान में सराय सिन्धु के पास चेनाब से मिल जाती है।
व्यास
यह रोहतांग दर्रे के पास व्यास कुण्ड से निकलती है। यह कोटी और लारजी के निकट महाखड्ड बनाती है। तथा हरिके के निकट सतलज से मिलती है।
सतलज
यह राकस ताल जो तिब्बत से 4630 मी की ऊंचाई पर स्थित हे, से निकलती है। यह एक पूर्ववर्ती नदी है। यह शिपकीला दर्रे के पास हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। स्पीति नदी इसकी प्रमुख नदी है। भाखड़ा नांगल बाँध सतलज नदी पर ही स्थित है।
गंगा अपवाह
गंगा नदी तन्त्र का विस्तार देश के लगभग एक चौथाई क्षेत्र पर पाया जाता हे। गंगा की सहायक नदियो मे हिमालय से एवं प्रायद्वीप प्रदेश दोनो से निकलने वाली नदियाँ सम्मलित है। यमुना, गोमती, घाघरा, गण्डक आदि हिमालय से निकलने वाली तथा चम्बल, बेतवा, केन, सोनआदि प्रायद्वीप प्रदेश से निकलती हैं।
गंगा
गंगा नदी उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले के 7000 मी ऊँचाई पर स्थित गोमुख के पास गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहाँ यह भागीरथी के नाम से जानी जाती है। देव प्रयाग में भारीरथी अलकनन्दा से मिलती है। इसके बाद दोनो की संयुक्त धारा को गंगा के नाम से जाना जाता है। अलकनन्दा की दो धाराएँ हे प्रथम धौलीगंगा द्वितीय विष्णु गंगा हे। ये दोनो विष्णु प्रयाग के पास मिलती है।हरिद्वार के पास गंगा मैदान में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा इलाहाबाद से होती हुई बांग्लादेश जाती है। बांग्लादेश में यह पद्मा के नाम से जानी जाती है। गंगा की कुछ बरसाती एवं कुछ सदानीरा नदिया इस प्रकार है वे नदियाँ जो बाएँ तट पर आकर मिलती हैं वो रामगंगा, गोमती, टोस , घाघरा,गण्डक,बागमती और कोसी हैं। तथा दायें तट पर .यमुना, सोन , दामोदर, पुनपुन व रूपनारायण है।
यमुना:
यह गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है यह बन्दर पूँछ (6,316किमी) के पश्चिम ढाल पर स्थित यमुनोत्री हिमनद से निकलती है तथा गंगा के समान्तर बहती हे एवं इलाहाबाद के निकट गंगा में मिल जाती है। यह कुल 1376 किमी लम्बी है। दक्षिण में विध्याचल पर्वत से निकल कर चम्बल, बेतवा तथा केन नदियाँ इसमे आकर मिलती है।
घाघरा:
इसे सरयू नदी के नाम से भी जाना जाता है। तिब्बत के पठार में स्थित मापचाचुंग हिमनद से निकलकर नेपाल के बाद भारत में आ जाती है। अपना मार्ग बदने के कारण ही इस नदी के कारण बाढ़ आ जाती है।
कोसी:
यह तीन नदीयो सन कोसी, अरूण कोसी, तामूरकोसी का मेल है। ये नदीयाँ सिक्किम, नेपाल एवं तिब्बत के हिमछ्छादित प्रदेशो से निकलती है। इसी नदी को बिहार का शोक भी कहते है।
ब्रह्यपुत्र अपवाह तन्त्र:
यह नदी मानसरोवर झील के निकट स्थित महान् हिमानी से निकलती है। इसकी कुल लम्बाई 2580 किमी तथा भारत के अन्दर यह 1346 किमी की लम्बाई की है। अपने उद्गम स्थान से यह हिमालय श्रेणी के समान्तर पूर्व की ओर 1100 किमी तक सांग्पो के नाम से बहती है।नामचा बरवा के निकट यह मध्य हिमालय को काटकर एक महाखड्ड का निर्माण करती है। यह अरूणाचल प्रदेश में दिहांग नाम से जानी जाती है। यह नदी सदिया के पास दिबांग एवं लोहित नदियाँ बाँए किनारे पर आकर मिलती है। इसके बाद इसे ब्रह्यपुत्र के नामसे जाना जाता है। असोम में यह नदी 720 किमी बहती है, इस नदी में उत्तर से आने वाली सुबन श्री, कामेंग, धम श्री, मानस, संकोश और तिस्ता आकर मिलती है। तथा दक्षिण से बूढ़ी दिहांग, दिसांग, और कोविली आकर मिलती है। धुबरी के पास ब्रह्यपुत्र दक्षिण की ओर मुडकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है। तथा यहा ये जमुना कहलाती है। बांग्लादेश में यह गंगा के साथ मिलकर गंगा ब्रह्यपुत्र नाम का विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है। असोम के ज्यादातर भाग में यह एक गुंफित नदी है। इस नदी के रास्ते में बहुत से द्वीप हे इन में माजुली द्वीप प्रमुख हे। यह विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप है
प्रायद्वीपीय नदीयाँ
बंगाल की खाड़ी में गीरने वाली नदीयाँ
महानदी--- यह नदी छत्तीसगढ़ में अमरकण्टक श्रेणी से निकलकर उड़ीसा से होकर बहती है और बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इस की प्रमुख सहायक नदीयाँ ईब, मांड़ , हसदो तथा केन है। प्रमुख राज्य छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश , झारखण्ड, उड़ीसा तथा महाराष्ट्र में अपवहन क्षेत्र हे। इस नदी पर ही हीराकुण्ड बाँध है.
गोदावरी-- यह प्रायद्वीपीय पठार की सबसे लम्बी नदी है। जो 1,465 किमी है। यह महाराष्ट्र के नासिक के त्रियम्बक से निकली है। इसका 50 प्रतिशत अपवहन महाराष्ट्र में हे। इसकी सहायक नदीयाँ है प्रवदी, पुरना, पेनगंगा, वेनगंगा, तथा अपवहन राज्य हे कर्नाटक, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश ।
कृष्णा—इसकी उत्पत्ति महाबलेश्वर के पास एक झरने से होती है। महाराष्ठ्र , कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश में बहती है। यह 1400 किमी लम्बी है। कोयना, भीमा, तुंगभद्रा,प्रमुख स
हायक नदीया है। यह नदी एक बडा डेल्टी बनाती है
कावेरी-- यह नदी पश्चिमी घाट के ब्रह्यगिरी श्रेणी से निकलती है। कर्नाटक व तमिलनाडु में बहती हुई कावेरीपत्तम के पास बंगाल की खाडी में गिर जाती है। यह 800 किमी लम्बी है। दक्षिण की गंगा कहलाती है। इसपर आयताकार डेल्टा वना है।मैसूर पठार में जलप्रपात बनाती है इन में शिव समुन्द्रम प्रमुख है।
स्वर्णरेखा तथा ब्राह्यणी— गंगा एवं महानदी डेल्टा के बीच स्वर्णरेखा एवं ब्राह्यणी नदीयाँ बहती है। झारखण्ड में स्थित ऊपरी क्षेत्र में ब्राह्यणी नदी दक्षिणी कोयल के नाम से जानी जातीहै।
पेन्नार-- इसका बेसिन कावेरी तथा कृष्णा नदी के बीच स्थित है।
अरब सागर में गिरने वाली नदीयाँ
ये नदीया पश्चिम की ओर बहकर अरबसागर में गिरजाती है।
नर्मदा-- इसकी कुल लम्बाई 1300 किमी है. यह मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के पास अमरकण्टक पहाड़ी से निकलकर भड़ौच के निकट असब सागर की खाड़ी में गिरजाती है। इसके उत्तर में विन्ध्याचल तथा दक्षिण में सतपूड़ा पर्वत है। इसके रास्ते में जबलपूर के निकट संगमरमर के शैल आते है। इसपर जबलपूर के पास धुआँधार जलप्रपात है। इसकी कोई सहायक नदीया नही है।
तापी- यह नदी मध्यप्रदेश के बेतूल जिले में महादेव की पहाडियो के दक्षिण में उत्पन्न होती है। यह 730 किमी लम्बी है। यह खम्भात की खाडी में विलीन होती है. नर्मदा व तापी दोनो हा एश्चुअरी का निर्माण करती है। ये नदीया डेल्टा नही बनाती है।
साबरमती – यह राजस्थान के डूँकरपुर जिले में अरावली की पहाडियो से निकलती है। 300 किमी दूरी तय करके यह खम्भात की खाडी में गिरजाती है।
माही— यह विन्ध्याचल पर्वत से निकलती है। 533 किमी की दूरी तय करके खम्भात की खाडी में गिरती है।
लूनी-- राजस्थान में अजमेर के दक्षिण – पश्चिम से निकलकर 320 किमी दूरी के बाद कच्छ के रन के दलदली क्षेत्र मे गिरती है.
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