♦ बॉक्साइट एल्युमिनियम का प्रमुख खनिज होता है।
♦ रुधिर की कमी से एनीमिया रोग हो जाता है।
♦ विटामिन सी घाव भरने मेँ सहायक है।
♦ केले मेँ अनिषेक जनन पाया जाता है।
♦ तिलचिट्टा मेँ रुधिर रंगहीन होता है।
♦ तम्बाकू मेँ निकोटिन नामक विषैला पदार्थ होता है।
♦ आमतौर से श्वसनीय शोथ रोग पेशी खिँचाव की दशाओँ से सम्बद्ध होता है।
♦ भौतिक परिवर्तन से पदार्थ के भौतिक गुणोँ मेँ परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन अस्थाई एवं उत्क्रमणीय होता है। भौतिक परिवर्तन केउदाहरण— सोने का पिघलना, काँच का टूटना, शक्कर का पानी मेँ घुलना, आश्वन, संघनन, उर्ध्वपातन आदि।
♦ रासायनिक परिवर्तन स्थाई एवं सामान्यतः अनुत्क्रमणीय होते हैँ। उदाहरण— कोयले का जलना, लोहे पर जंग लगना, दूध का दही बनना,अवक्षेपण, किण्वन, दहन आदि।
♦ घरोँ मेँ भेजी जाने वाली प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टता 220 वोल्ट तथा आवर्ती 50 चक्र प्रति सैकण्ड या हर्ट्ज होती है।
♦ घरोँ मेँ लगे विद्युत उपकरण बल्ब, पंखा, दूरदर्शन, हीटर, रेफ्रीजरेटर आदि को समान्तर क्रम मेँ लगाया जाता है।
♦ विद्युत परिपथ मेँ धारा प्रवाहित करने पर प्रति सैकण्ड किये गये कार्य या कार्य करने की दर को विद्युत शक्ति कहते हैँ। विद्युत शक्ति का मात्रक जूल प्रति सैकण्ड या वाट है।
♦ वाट शक्ति का छोटा मात्रक है। 1 किलोवाट = 1000 वाट, 1 मेगावाट = 1000000 वाट, 1 अश्वशक्ति (Horse Power) = 746 वाट।
♦ यदि किसी बल्ब पर 100 वाट तथा 220 वोल्ट लिखा है तो इसका तात्पर्य है कि बल्ब 220 विभवान्तर पर प्रयुक्त करने पर 100 वाट शक्ति व्यय करेगा अर्थात् 1 सैकण्ड मेँ 100 जूल ऊर्जा खर्च होगी।
♦ विद्युत ऊर्जा को किलोवाट घण्टा मेँ मापा जाता है। 1 किलोवाट घण्टा को एक यूनिट कहते हैँ। एक किलोवाट घण्टा (KWh) = 1000 वाटx घण्टा = 1000 X 60 X 60 वाट सैकण्ड = 3.6 x 10&sup6;
♦ फ्यूज तार एक पतला तार होता है जे अल्प गलनांक तथा कम प्रतिरोध वाले मिश्र धातु (टिन व सीसा) का बना होता है।
♦ टेलीफोन, टेलीग्राफ, विद्युत घण्टी तथा विद्युत क्रेन विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर कार्य करते हैँ।
♦ हीटर प्लेट प्लास्टर ऑफ पेरिस एवं चीनी मिट्टी के मिश्रण से बनाई जाती है जो विद्युत की कुचालक होती है।
♦ हीटर मेँ तापन तन्तु नाइक्रोम, केलोराइट, क्रोमेल आदि का बना हुआ प्रयुक्त किया जाता है।
♦ विद्युत स्त्री या प्रेस मेँ तापन तन्तु नाइक्रोम अभ्रक के टुकड़ोँ मेँ रखा जाता है।
♦ विद्युत टोस्टर जो डबल रोटी को सेकने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, मेँ तापन तन्तु नाइक्रोम तार का बना होता है।
♦ रेफ्रिजरेटर न्यून दाब पर द्रव के वाष्पन सिद्धान्त पर कार्य करता है।
♦ रेफ्रिजरेटर मेँ अमोनिया, मिथाइल क्लोराइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (फ्रीऑन) एवं हाइड्रोफ्लोरो कार्बन प्रशीतक के रूप मेँ काम मेँ लाये जाते हैँ।
♦ किसी चालक मेँ विद्युत धारा प्रवाहित करने पर वह गर्म हो जाता है इसे विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहते हैँ।
♦ हीटर, प्रेस, विद्युत केतली, टोस्टर, ऑवन आदि युक्तियाँ धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर कार्य करती हैँ। इन सभी युक्तियोँ मेँ प्रायः नाइक्रोम जैसी मिश्र धातु के तापन तन्तु काम मेँ लाये जाते हैँ।
♦ बैसेमर विधि से फफोलेदार ताँबा प्राप्त होता है।
♦ अपरिस्कृत लोहा ढलवां लोहा या कच्चा लोहा कहलाता है जबकि पिटवा लोहा, लोहे का शुद्ध रूप होता है।
♦ सल्फर का उपयोग मुख्य रूप से गंधक का अम्ल, बारूद, औषधी एवं कीटनाशी के रूप मेँ किया जाता है।
♦ फॉस्फोरस का उपयोग दियासलाई उद्योग, मिश्रधातु तथा कीटनाशी यौगिकोँ के निर्माण मेँ किया जाता है जबकि इसके यौगिक उर्वरक के रूप मेँ प्रयुक्त होते हैँ।
♦ वायुमण्डल की ओजोन परत सूर्य की किरणोँ से आने वाली हानिकारक पराबैँगनी किरणोँ का अवशोषण करती है।
♦ गन्धक के अम्ल का उपयोग डिटर्जेन्ट उद्योगोँ मेँ, विद्युत बैटरी तथा प्रयोगशाला मेँ बहुतायत से किया जाता है।
♦ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का उपयोग क्लोरीन गैस के निर्माण तथा विरंजक चूर्ण बनाने मेँ किया जाता है।
♦ सीमेन्ट मेँ चूना, सिलिका, ऐलूमिना, मैग्नीशियम ऑक्साइड तथा फेरिक ऑक्साइड आदि होते हैँ।
♦ प्लास्टर ऑफ पेरिस कैल्सियम का अर्द्धहाइड्रेट होता है जो खिलौने, मूर्तियाँ तथा प्लास्टर के काम आता है।
♦ क्रिस्टलीय अपररूपोँ मेँ हीरा, ग्रेफाइट एवं फुलरीन प्रमुख हैँ।
♦ हीरा अत्यधिक कठोर, ताप एवं विद्युत का कुचालक होता है।
♦ ग्रेफाइट नर्म व चिकना, ताप एवं विद्युत का सुचालक होता है।
♦ एल्केनोँ के पॉली क्लोरोफ्लोरो व्युत्पन्नोँ को क्लोरो–फ्लुओरो कार्बन या फ्रीऑन कहते हैँ। फ्रीऑन का उपयोग प्रशीतक के रूप मेँ किया जाता है।
♦ संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) का उपयोग ईंधन के रूप मेँ तथा महानगरोँ मेँ चलने वाले वाहनोँ मेँ पेट्रोल तथा डीजल के विकल्प के रूप मेँ किया जा रहा है।
♦ प्राकृतिक रबर आइसोप्रीन का बहुलक होता है।
♦ प्राकृतिक रबर को गंधक के साथ गर्म करना वल्कीनीकरण कहलाता है।
♦ साबुन एवं अपमार्जक निर्माण की क्रियाविधि भिन्न–भिन्न है। अपमार्जक कठोर जल के साथ भी अच्छे परिणाम देते हैँ।
♦ कीटोँ को मारने या प्रतिकर्षित करने के लिए प्रयुक्त रसायनोँ को कीटनाशी कहते हैँ।
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