भारत से अंग्रेजों के शासन को हटाने का पहला प्रयास 1857 की क्रांति के रुप में सामने आया जिसे पहला स्वतंत्रता संग्राम कहते है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की बढ़ती उपनिवेशवादी नीतियों एवं शोषण के खिलाफ इस आंदोलन ने अंग्रेजो की नींव हिला दी।
विभिन्न इतिहासकारों ने 1857 की क्रांति के स्वरूप में अलग अलग विचार दिए कुछ इतिहासकार इसे केवल ' सैनिक विद्रोह ' मानते हैं तो कुछ इसे ईसाईयों के विरुद्ध हिन्दू मुस्लिम का षड्यंत्र। इस क्रांति के बारे में विद्वानों के मत निम्न हैं -
सर जॉन लारेन्स एवं सीले - '1857 का विद्रोह सिपाही विद्रोह मात्र।'
आर . सी मजूमदार - ' यह न तो पहला था, न ही राष्ट्रीय और यह स्वतंत्रता के लिए भी नही था ।'
वीर सावरकर - ' यह विद्रोह देश की स्वतंत्रता के लिए सुनियोजित युद्ध था ।'
जेम्स आउट्म एंव डब्ल्यू. टेलर - ' यह अंग्रेजों के खिलाफ हिन्दू एंव मुसलमानो दवारा एक षडयंत्र था ।'
एल . आर. रीज - ' यह धर्मान्धों का ईसाईयों के खिलाफ एक षडयंत्र था ।'
विपिनचंद्र - ' 1867 का विद्रोह विदेशी शासन से देश को मुक्त कराने के लिए देशभक्तिपूर्ण प्रयास था ।'
1857 Revolt क्रांति की सबसे मुख्य एवं पहली घटना बैरकपुर छावनी ( प. बंगाल ) में घटी, जहां 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे सिपाही ने गाय एवं सूअर की चर्बी से तैयार कारतूसों के उपयोग से इनकार कर दिया और अपने उच्च अंग्रेज अधिकारी की हत्या की। अंग्रेजी अधिकारी दवारा 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे एवं ईश्वर पांडे को फांसी की सजा दे दी गई।सैनिकों की मौत की खबर से देश मे इस विद्रोह ने भयंकर रूप ले लिया।
10 मई 1857 को मेरठ छावनी की पैदल सैन्य टुकड़ी दवारा इस कारतूसों का विरोध कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी। 12 मई 1857 को विद्रोहियों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और बहादुरशाह जाफ़र को अपना सम्राट घोषित कर दिया। भारतीयों एवं अंग्रेजों के बीच हुए कड़े संघर्ष के पश्चात 20 सितम्बर 1857 को अंग्रेजों दवारा पुनः दिल्ली पर अधिकार कर लिया गया।
दिल्ली विजय का समाचार सुन देश के विभिन्न हिस्सो में इस विद्रोह की आग फैल गई जिसमें - कानपुर, लखनऊ, बरेली, जगदीशपुर ( बिहार ) झांसी, अलीगढ, इलाहाबाद, फैजाबाद आदि प्रमुख केन्द्र बने।
केंद्रक्रन्तिकारीविद्रोह तिथिउन्मूलन तिथि व अधिकारी
दिल्ली बहादुरशाह जफर, बख्त खां 11,12 मई 1857 21 सितंबर 1857- निकलसन, हडसन
कानपुर नाना साहब, तात्या टोपे 5 जून 1857 6 सितंबर 1857 - कैंपबेल
लखनऊ बेगम हजरत महल 4 जून 1857 मार्च 1858 - कैंपबेल
झांसी रानी लक्ष्मीबाई जून 1857 3 अप्रैल 1858 - ह्यूरोज
इलाहाबाद लियाकत अली 1857 1858 - कर्नल नील
जगदीशपुर (बिहार ) कुँवर सिंह अगस्त 1857 1858 - विलियम टेलर , विंसेट आयर
बरेली खान बहादुर खां 1857 1858
फैजाबाद मौलवी अहमद उल्ला 1857 1858
फतेहपुर अजीमुल्ला 1857 1858 - जनरल रेनर्ड
1857 की क्रांति के मुख्य कारण- इस विद्रोह के मुख्य कारणों में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किये गये सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक शोषण मुख्य हैं। लॉर्ड डलहौजी की व्यपगत नीति तथा वेलेजली की सहायक संधि से भारत की जनता में बहुत असंतोष था । चर्बी युक्त कारतूस ने लोगों की दिलों मे आग लगाने का कार्य किया और जो कि स्वाधीनता संग्राम के रूप में सामने आया।
- वेलेजली की सहायक संधि ने क्रांति को भड़काने में मुख्य भूमिका निभाई। इस संधि मे भारतीय राजाओं को अपने राज्यों में कंपनी की सेना रखना पड़ता था। सहायक संधि से भारतीय राजाओं की स्वतंत्रता समाप्त होने लगी और राज्यों में कंपनी का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था। अंग्रेजों की पहली सहायक संधि अवध के नवाब के साथ हुई।
सहायक संधि करने वाले राज्य - हैदराबाद , मैसूर , तंजौर , अवध , पेशवा ,बराड के भोंसले , सिंधिया , जोधपुर , जयपुर , मच्छेड़ी , बूंदी , भरतपुर थे।
- लाँर्ड डलहौजी की ' राज्य हड़प नीति ' या व्यपगत के सिद्धांत की वजह से भी भारतीयों में असंतोष था। हड़प नीति में अंग्रेजों ने हिन्दू राजाओं के पुत्र को गोद लेने के अधिकार को बन्द कर दिया। तथा उत्तराधिकारी नहीं होने पर राज्यों का विलय अंग्रेजी राज्यों में कर लिया जाता था।
भारतीय राज्यों के विलय होने के बाद उच्च पदों पर केवल अंग्रेजों की नियुक्ति की जाने लगी भारतीय को इससे वंचित हो गए।
- कृषि क्षेत्र में सुविधाओं के अभाव में उत्पादन कम होने लगा था लेकिन ब्रिटिश सरकार अत्यधिक लगान एवं भू - कर वसूल रही थी जिससे जनता आक्रोशित हो गई।
भारत में धर्म सुधार के नाम से ईसाई धर्म का प्रचार एवं धर्म बदलने से भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचीं।
- भारतीय सैनिकों को अंग्रेज मानूली वेतन देते थे तथा उनकी पदोन्नति की कोई उम्मीद नहीं थी। जिस पद पर वह भर्ती होता उसी पद से सेवानिवृत्त भी होता था।
- लार्ड कैनिन से पारित अधिनियम के अनुसार सरकार भारतीयो से सीमाओं के बाहर भी कार्य करवा सकती थी जबकि समुद्र पार करना भारतीय समाज में धर्म के विरुद्ध था
- इस क्रांति का सबसे मुख्य एवं तात्कालिक कारण एनफील्ड रायफल ( Enfield Rifle ) के कारतूसों में चर्बी का उपयोग होना था। इस राइफल के कारतूसों में गाय एवं सूअर की चर्बी का प्रयोग होता था जिसे मुह से काटने के पश्चात प्रयोग किया जाता था इससे भारतीयों का धर्म भ्रष्ट होने का डर था। बैरकपुर छावनी से मंगल पांडे ने इसका विरोध किया जो धीरे धीरे पूरे देश में क्रांति के रुप में फैल गई।
विद्रोह के असफलता के कारण अंग्रेजों के खिलाफ यह विद्रोह पूरे देश में फैल गया परन्तु फिर भी कुछ कारणों से सफल नहीं हो सका । इसकी असफलता के कुछ मुख्य कारण निम्न हैं -
यह विद्रोह भारतीय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ गुस्से में बिना किसी योजना एवं संगठन के अलग - अलग जगह एवं समय में शुरु कर दिया था। जिसे से अंग्रेजों ने विद्रोह को आसानी से दबा दिया।
क्रांतिकारीयो के पास पुराने व परम्परागत हथियार थे और अंग्रेजों की सेना के पास नए एवं आधुनिक हथियारों का भंडार होता था।
इस विद्रोह में कुछ भारतीय राजाओं ने बड़ चढ़कर हिस्सा लिया लेकिन कुछ ने अंग्रेजों का साथ दिया जिनमें - ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम , पटियाला के राजा आदि शामिल थे।
विद्रोह के प्रभाव से1857 की क्रांति को दिसंबर 1858 तक दबा दी गया और पुनः अंग्रेजों की सत्ता स्थापित हो गई लेकिन क्रांति ने सम्पूर्ण अंग्रेजी शासन की जड़ें हिला दी।
इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश संसद में एक कानून पारित कर दिया जिसमे ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन का अंत कर और भारत का शासन ब्रिटिश महारानी के हाथो में चला गया।
अंग्रेजों की सेना का दोबारा पुनर्गठन किया गया जिससे ऐसी घटनाएं दोबारा न हो सके।
भारतीयों को इस विद्रोह से काफी प्रेरणा मिली तथा लोगों ने समय समय पर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किए । भारत की पूर्ण स्वतंत्रता तक संघर्ष लगातार चलता रहा।
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